चंद्र ग्रहण, जिसे अंग्रेजी में ‘लूनर एक्लिप्स’ (lunar eclipse) कहते हैं, एक अद्भुत खगोलीय घटना है जिसने सदियों से विज्ञान प्रेमियों, ज्योतिषियों और आम जनमानस को आकर्षित किया है। इस ब्लॉग में हम चंद्र ग्रहण के बनने की प्रक्रिया, इसके प्रकार, इसकी वैज्ञानिक वजह और पौराणिक मान्यताओं, ब्लड मून के रहस्य, और इससे जुड़ी सावधानियों का आसान और विस्तृत विवरण देंगे।
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चंद्र ग्रहण क्या होता है?
चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और सूर्य की चांद तक पहुंचने वाली रोशनी पृथ्वी की छाया में आकर रुक जाती है। इस स्थिति में, पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है और वह पूरी तरह या आंशिक रूप से ढक जाता है। यह घटना केवल पूर्णिमा (फुल मून) की रात को ही घटित होती है, जब चांद पृथ्वी के दूसरी ओर सूर्य के बिल्कुल सामने होता है.
पृथ्वी की छाया दो प्रकार की होती है:
- मुख्य छाया (Umbra) – जहां पूरी रोशनी रुक जाती है।
- उपछाया (Penumbra) – जहां कुछ रोशनी रुकती है, बाकी घाट जाती है।
चंद्र ग्रहण कैसे लगता है?
हर पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण नहीं लगता। ऐसा क्यों? क्योंकि चंद्रमा की कक्षा लगभग 5° झुकी हुई है पृथ्वी की कक्षा से। ज्यादातर पूर्णिमा पर चांद पृथ्वी की छाया के ऊपर या नीचे से निकल जाता है, लेकिन जब सूर्य, पृथ्वी और चांद एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है और चंद्र ग्रहण बनता है।
ग्रहण का बनना इस प्रकार होता है:
- सबसे पहले चांद पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करता है – उपछाया चंद्र ग्रहण।
- उसके बाद मुख्य छाया में जाता है – आंशिक या पूर्ण चंद्र ग्रहण।
चंद्र ग्रहण के प्रकार
1. पूर्ण चंद्र ग्रहण
जब चंद्रमा पूरा का पूरा पृथ्वी की मुख्य छाया (Umbra) में समा जाता है, तब पूर्ण चंद्र ग्रहण बनता है। उस समय चांद पर गहरा अंधकार छा जाता है और वह ‘ब्लड मून’ यानी हल्का लाल रंग का नजर आता है।
2. आंशिक चंद्र ग्रहण
इस स्थिति में चंद्रमा का कुछ भाग ही मुख्य छाया में डूबता है और बाकी भाग चमकदार रहता है।
3. उपछाया चंद्र ग्रहण
जब चंद्रमा केवल पृथ्वी की उपछाया से गुजरता है तो उसे उपछाया चंद्र ग्रहण कहते हैं। इसमें चांद की चमक हल्की सी कम हो जाती है और पूरी तरह डार्क नहीं होता.
ब्लड मून क्यों दिखता है?
कई बार पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा एकदम काला नहीं होता बल्कि गुलाबी-लाल रंग लिए नजर आता है। ऐसा क्यों?
जब पृथ्वी की वायुमंडलीय परतों से सूर्य की रोशनी गुजरती है, तो नीला प्रकाश बिखर जाता है और लाल प्रकाश चंद्रमा तक ज्यादा मात्रा में पहुंचता है। इसी कारण चंद्रमा पर लालिमा दिखाई देती है। यही वजह है कि पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय चांद को ‘ब्लड मून’ कहा जाता है.
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में फर्क
- सूर्य ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है, जिससे सूर्य ढंक जाता है।
- चंद्र ग्रहण में पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है, जिससे चांद ढंक जाता है।
- सूर्य ग्रहण बहुत कम समय (कुछ मिनट) के लिए दिखता है और सुरक्षा के लिए खास चश्मे जरूरी हैं, लेकिन चंद्र ग्रहण कई घंटों तक दिखता है और इसे बिना किसी सुरक्षा उपकरण के देखा जा सकता है.
चंद्र ग्रहण कब-कब लगता है?
चंद्र ग्रहण की घटना साल में कम ही होती है और हर बार अलग-अलग हिस्सों से दिखाई देती है। जिन क्षेत्रों में पूर्णिमा की रात में चंद्रमा क्षितिज से ऊपर होता है, वहां ग्रहण स्पष्ट दिखता है.
वैज्ञानिक नजरिया
यह एक साधारण प्राकृतिक घटना है — इसमें डर या रहस्य नहीं है। विज्ञान के अनुसार यह खगोलीय पिंडों का सही समय, सही स्थान और सही स्थिति पर होना है। पृथ्वी की छाया, उसके वायुमंडल और सूर्य की रोशनी के अपवर्तन की वजह से चंद्रमा पर रंग बदलते दिखाई देते हैं।
पौराणिक संदर्भ और मान्यताएं
भारत में चंद्र ग्रहण को धार्मिक दृष्टि से भी देखा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय राहु नामक असुर ने अमृत पी लिया था। सूर्य और चंद्रमा ने यह देख लिया, तब भगवान विष्णु ने राहु का सिर काट लिया। सिर (राहु) और धड़ (केतु) ग्रह बन गए। कहा जाता है कि राहु-केतु चांद और सूर्य को निगलते हैं – जिसे ग्रहण कहा जाता है.
चंद्र ग्रहण के समय भोजन, पूजा आदि पर रोक, सूतक काल की मान्यता, मंत्र जाप, गर्भवती महिलाओं को सतर्क रहने की सलाह आदि बातें आम हैं। ऐसे समय का वैज्ञानिक कारण नहीं है, पर परंपरा का हिस्सा माना जाता है।
चंद्र ग्रहण देखने के लिए क्या करें?
- ग्रहण पूर्णिमा की रात को ही होता है।
- इसे बिना किसी खास सुरक्षा उपकरण के सीधे देखा जा सकता है।
- सबसे अच्छा नजारा ग्रामीण इलाकों में या खुले स्थानों पर मिलता है।
- अपने बच्चों को इस घटना का वैज्ञानिक कारण बताएं ताकि वे इसके डर या गलतफहमी से बच सकें।
निष्कर्ष
चंद्र ग्रहण प्राकृतिक, रोमांचक और खूबसूरत खगोलीय घटना है। विज्ञान के मुताबिक यह सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के एक सीधी रेखा में आने पर पृथ्वी की छाया चांद को ढक देती है। इसका मुख्य कारण और प्रक्रिया समझना हमें प्रकृति की अद्भुत व्यवस्था के प्रति सजग बनाता है। धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से भी यह घटना काफी महत्वपूर्ण है। अगली बार जब चंद्र ग्रहण दिखाई दे, तो इसके विज्ञान और कथाओं दोनों का आनंद जरूर लें!
आशा है, आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा। सवाल या सुझाव हो तो जरूर पूछें।