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Housing and Urban/Rural Development: भारत एक विशाल और विविधता से भरा देश है, जहाँ लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जबकि शहरी आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। इस जनसंख्या संतुलन के कारण “आवास एवं शहरी/ग्रामीण विकास” का प्रश्न केवल बुनियादी ज़रूरत तक सीमित नहीं रह जाता, बल्कि यह देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ जाता है। आज के भारत में, विकास तभी सार्थक है जब शहरों की चमक गाँवों तक पहुँचे और हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन के लिए छत और सुविधाएँ मिलें।
1. भारत में आवास की आवश्यकता
Housing and Urban/Rural Development: छत मानव जीवन की मूल आवश्यकता है। स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी देश में लाखों लोग या तो बेघर हैं या कच्चे एवं असुरक्षित मकानों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यही कारण है कि भारत सरकार ने बीते दो दशकों में “सभी के लिए आवास” को प्राथमिक नीति का दर्जा दिया है।
आवास केवल रहने की जगह नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सुरक्षा, आत्म-सम्मान और आर्थिक स्थिरता की पहचान है। एक सुरक्षित और सुदृढ़ घर किसी भी परिवार के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में निर्णायक भूमिका निभाता है।
2. ग्रामीण आवास विकास
ग्रामीण भारत में आवास योजनाओं का उद्देश्य ऐसे घरों का निर्माण करना है जो पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ हों, स्थानीय संसाधनों का उपयोग करें और सामाजिक समानता सुनिश्चित करें।
मुख्य योजनाएँ:
- प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण):
2016 में शुरू की गई यह योजना 2024 तक “हर गरीब को पक्का घर” देने के लक्ष्य पर आधारित है। इसमें लाभार्थियों को ₹1.20 लाख से ₹1.30 लाख तक की सहायता दी जाती है। मनरेगा से मज़दूरी सहायता और शौचालय निर्माण की राशि भी इसमें जोड़ दी जाती है। - इंदिरा आवास योजना (पूर्ववर्ती योजना):
1985 से संचालित यह योजना गरीब तबके को कच्चे घरों के बदले पक्के आवास प्रदान करने का आधार बनी। - प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास मंत्रालय की क्लस्टर एप्रोच:
कुछ राज्यों में मॉडल गाँवों को विकसित कर सामुदायिक आधार पर आवास एवं बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं।
ग्रामीण आवास की चुनौतियाँ:
- निर्माण सामग्री की लागत में वृद्धि
- भूमि विवाद और स्वामित्व से जुड़ी समस्याएँ
- भौगोलिक प्रतिकूलताएँ (विशेषतः पहाड़ी और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में)
- निर्माण तकनीकों की जानकारी का अभाव
भविष्य की दिशा:
स्थानीय स्तर पर पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग, महिलाओं की सहभागिता तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म (AWAASSoft) से पारदर्शिता बढ़ाना ग्रामीण आवास विकास का भविष्य तय करेगा।
3. शहरी आवास विकास
Housing and Urban/Rural Development: भारत के शहर बढ़ते जनसंख्या दबाव, अनियोजित विस्तार और झुग्गी बस्तियों की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। यहाँ “शहरी आवास” केवल मकान नहीं, बल्कि शहरी जीवनशैली, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं से जुड़ा व्यापक मुद्दा है।
महत्वपूर्ण योजनाएँ:
- प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी):
यह योजना 2015 में आरंभ की गई थी जिससे शहरी गरीब, मध्यम आय एवं निम्न आय वर्ग को ईएमआई पर आंशिक सब्सिडी के साथ मकान मिले। इसमें चार मुख्य घटक हैं —- इन-सीटू स्लम पुनर्विकास
- क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी
- पार्टनरशिप द्वारा किफायती मकान
- व्यक्तिगत मकान निर्माण
- स्मार्ट सिटी मिशन:
यह योजना 2015 में शुरू हुई, जिसका उद्देश्य तकनीकी और योजनाबद्ध ढांचे के माध्यम से नागरिक सुविधाओं को स्मार्ट बनाना है। - अटल मिशन फॉर री-जुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT):
इसके तहत जलापूर्ति, सीवरेज, हरियाली और शहरी बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया गया है।
शहरी आवास की चुनौतियाँ:
- भूमि की सीमित उपलब्धता और उच्च कीमत
- झुग्गी बस्तियों का तेजी से विस्तार
- औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरणीय असंतुलन
- यातायात जाम और परिवहन असुविधाएँ
सफल प्रयास:
राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से हजारों किफायती मकान बनवाए। डिजिटल मंजूरी प्रणाली और GIS आधारित नगर नियोजन से भी पारदर्शिता बढ़ी है।
4. शहरी और ग्रामीण विकास में संतुलन
भारत में “ग्रामीण-शहरी अंतर” विकास की सबसे बड़ी चुनौती है। जहाँ एक ओर शहरों में अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर है, वहीं गाँवों में बुनियादी सड़क, जल और स्वास्थ्य सुविधाएँ अभी भी अधूरी हैं।
संतुलन के उपाय:
- ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम सड़क, बिजली, डिजिटल शिक्षा और स्वास्थ्य ढाँचे को विकसित करना।
- छोटे शहरों (Semi-Urban Areas) को “विकास के पुल” के रूप में उपयोग करना।
- स्थानीय उद्योग, हस्तशिल्प और कृषि-आधारित उद्यमों को बढ़ावा देना ताकि ग्रामीण आबादी शहरों की ओर पलायन से बचे।
5. पर्यावरणीय और सतत विकास
आवास विकास के साथ-साथ सतत विकास का विचार अत्यंत आवश्यक है। तेजी से शहरीकरण ने पर्यावरण प्रदूषण, जल संकट और भूमि प्रदूषण को जन्म दिया है।
सतत विकास की दिशा में कदम:
- सौर ऊर्जा और वर्षा जल संचयन को नए निर्माणों में अनिवार्य बनाना।
- पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्री जैसे फ्लाई-ऐश ईंटों, मिट्टी-ब्लॉक, बांस एवं पुनर्चक्रण सामग्री का उपयोग।
- Smart Energy Management और Green Building Standards (BEE, GRIHA, LEED प्रमाणन)।
- शहरी हरित पट्टी और जल निकासी प्रणाली को मजबूत करना।
6. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नीति सुधार
2025 तक केंद्र सरकार ने “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य के लिए स्पष्ट नीति ढाँचा तैयार किया है, जिसमें “आवास एवं शहरी/ग्रामीण विकास” प्रमुख स्तंभ है।
प्रमुख नीतिगत पहलें:
- शहरों में रेंटल हाउसिंग पॉलिसी लागू कर प्रवासी मजदूरों के लिए आवास व्यवस्था।
- ग्रामीण आवास सेटेलाइट मानचित्रण द्वारा पारदर्शी आवंटन।
- डिजिटल भूमि रिकॉर्ड प्रणाली (SVAMITVA योजना)।
- महिला गृहस्वामित्व को प्रोत्साहन (PMAY में संयुक्त रजिस्ट्री अनिवार्यता)।
7. सामाजिक प्रभाव
आवास योजनाओं का सीधा असर समाज की स्थिरता और सुरक्षा पर पड़ता है। एक पक्का घर मिलने से व्यक्ति सामाजिक रूप से सम्मानित होता है, उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है।
महिलाओं और बच्चों का सशक्तिकरण:
घर के स्वामित्व में महिलाओं की साझेदारी से घरेलू निर्णयों में उनकी भागीदारी बढ़ी है। बच्चे सुरक्षित माहौल में शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं।
8. आगे की राह
भारत को 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति करनी है, जिसमें “सभी के लिए आवास और सुरक्षित समुदाय” प्रमुख बिंदु है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय, वित्तीय संसाधनों का न्यायसंगत वितरण और नागरिकों की सहभागिता आवश्यक है।
भविष्य के भारत में शहरी और ग्रामीण विकास का संतुलन ही वास्तविक प्रगति का प्रतीक होगा —
जहाँ शहरों की चमक और गाँवों की गंध साथ हो, जहाँ हर हाथ में श्रम और हर सिर पर छत हो।
निष्कर्ष:
आवास एवं शहरी/ग्रामीण विकास केवल नीति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का वह प्रयास है जो हर भारतीय को समान अवसर और सम्मानजनक जीवन प्रदान करता है। प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों ने भारत को उस दिशा में अग्रसर किया है जहाँ “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” वास्तविक रूप ले रहा है।








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